पेजेट रोग कब और कैसे फैलता है
इस रोग के फैलने से हड्डी का टूटना, रीढ़ की हड्डियों में नसों का दब जाना और बहरापन तक हो सकता है। स्वस्थ हड्डी में सामान्य रूप से रिसाइकिलिंग प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रक्रिया के दौरान संतुलन बिगड़ने पर पेजेट बीमारी घेर लेती है। नतीजतन, नई बनने वाली हड्डी असामान्य आकार की और कमजोर हो जाती है। यह बीमारी अक्सर 40 वर्ष से ऊपर के लोगों को प्रभावित करती है अभी इस बीमारी प्रतिशत कुछ कम है।
पेजेट के कई रोगियों में प्रारम्भिक तौर पर कोई लक्षण नहीं दिखता है और वे इस बात से अनजान रहते हैं कि उन्हें यह बीमारी है जब तक कि किसी कारण से एक्स-रे नहीं लिया जाता है। जब हड्डी में दर्द और अन्य लक्षणों की शुरुआत होती है तो बढ़ते हुए गठिया, हड्डी की विकृति और फ्रैक्चर तक का रूप ले लेती है।
पेजेट के कई रोगियों में प्रारम्भिक तौर पर कोई लक्षण नहीं दिखता है और वे इस बात से अनजान रहते हैं कि उन्हें यह बीमारी है जब तक कि किसी कारण से एक्स-रे नहीं लिया जाता है। जब हड्डी में दर्द और अन्य लक्षणों की शुरुआत होती है तो बढ़ते हुए गठिया, हड्डी की विकृति और फ्रैक्चर तक का रूप ले लेती है।
पेजेट की बीमारी शरीर की किसी भी हड्डी को प्रभावित कर सकती है। यह रोग अक्सर रीढ़, कूल्हे, सिर और पैरों की हड्डियों में दिखाई देता है। सिर की हड्डी बढ़ने से सिर दर्द और सुनने में समस्या हो सकती है। यह एक ही नहीं, कई हड्डियों में भी मौजूद हो सकता है। पेजेट की बीमारी का कारण ज्ञात नहीं है लेकिन चिकित्सकों ने ऐसे कई कारकों की पहचान की है, जो किसी व्यक्ति में रोग की वजह हो सकते हैं।
एक हालिया शोध में विषाणु को भी इसका कारक माना जा रहा है। यह बीमारी आनुवांशिक तौर पर भी हो सकती है और तब यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। जिन रोगियों में इसके लक्षण होते हैं उनमें हड्डी का दर्द सबसे आम शिकायत है। इसके अलावा हड्डी के पास जोड़ों में गठिया हो सकती है या फिर रीढ़ की हड्डी बढ़ने से आसपास की नसों में दबाव हो जाता है जिससे वो जगह सुन्न होने लगती है।
जब पेजेट की बीमारी कई हड्डियों में सक्रिय होती है तो अति सक्रिय ऑस्टियोक्लास्ट हड्डी से पर्याप्त कैल्शियम छोड़ सकते हैं क्योंकि वे इसे तोड़कर रक्त में कैल्शियम का स्तर बढ़ा देते हैं। इससे शरीर में कई बीमारियों का जन्म हो सकता है जिनमें थकान, दुर्बलता, भूख में कमी, पेट में दर्द, कब्ज आदि शामिल हैं। पेजेट की बीमारी एक प्रकार से हड्डी के कैंसर में भी बदल सकती है जिसे 'सारकोमा' कहा जाता है। जब ऐसा होता है तो पेजेट रोग से प्रभावित हिस्से में गंभीर और असहनीय दर्द होता है।
एक हालिया शोध में विषाणु को भी इसका कारक माना जा रहा है। यह बीमारी आनुवांशिक तौर पर भी हो सकती है और तब यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। जिन रोगियों में इसके लक्षण होते हैं उनमें हड्डी का दर्द सबसे आम शिकायत है। इसके अलावा हड्डी के पास जोड़ों में गठिया हो सकती है या फिर रीढ़ की हड्डी बढ़ने से आसपास की नसों में दबाव हो जाता है जिससे वो जगह सुन्न होने लगती है।
जब पेजेट की बीमारी कई हड्डियों में सक्रिय होती है तो अति सक्रिय ऑस्टियोक्लास्ट हड्डी से पर्याप्त कैल्शियम छोड़ सकते हैं क्योंकि वे इसे तोड़कर रक्त में कैल्शियम का स्तर बढ़ा देते हैं। इससे शरीर में कई बीमारियों का जन्म हो सकता है जिनमें थकान, दुर्बलता, भूख में कमी, पेट में दर्द, कब्ज आदि शामिल हैं। पेजेट की बीमारी एक प्रकार से हड्डी के कैंसर में भी बदल सकती है जिसे 'सारकोमा' कहा जाता है। जब ऐसा होता है तो पेजेट रोग से प्रभावित हिस्से में गंभीर और असहनीय दर्द होता है।
पेजेट रोग (Paget Disease) का इलाज क्या है ?
पेजेट की बीमारी का आमतौर पर एक्स-रे द्वारा निदान किया जा सकता है। निदान की पुष्टि करने में सहायता के लिए सीरम क्षारीय फ़ॉस्फ़ेटस ई नामक रक्त परीक्षण का भी उपयोग किया जा सकता है। पेजेट की बीमारी का पता मूत्र परीक्षणों में भी लगाया जा सकता है। हड्डी के स्कैन (बोन स्कैन) का उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि कौन-कौन सी हड्डियां प्रभावित हुई हैं।पेजेट रोग के निदान की पुष्टि करने के लिए कभी-कभी बायोप्सी की भी आवश्यकता होती है। अक्सर डॉक्टर प्रभावित हड्डी में स्थिति की निगरानी के लिए नियमित रूप से एक्स-रे की सिफारिश करते हैं। कुछ मामलों में इस बीमारी की जटिलताओं के लिए सर्जरी की आवश्यकता भी होती है। इन्हीं सभी चेकअप के द्वारा पेजेट रोग का इलाज किया जाता है।