हाइपोक्सिया के हालात से कैसे बचें
चक्कर आना, मिचली, बेहोशी, थकान, पांव में झुनझुनी और शरीर पर काबू न रहना आदि इसके अन्य लक्षण हैं। गंभीर हाइपोक्सिया (Hypoxia) में भ्रम की स्थिति, व्यवहार में बदलाव, तेज सिरदर्द, दिल की धड़कन का बढ़ना (टैचीकार्डिया), जल्दी-जल्दी सांस लेना, रक्तचाप में कमी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। रक्तचाप में अचानक कमी से मृत्यु तक हो सकती है। कभी-कभी हाइपोक्सिया (Hypoxia) से प्रभावित लोग बहुत ज्यादा बोलने, हंसने या रोने भी लगते हैं।
हाइपोक्सिया (Hypoxia) कई कारणों से हो सकती है। जिन लोगों को 'क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी)' जैसी फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हैं उनमें हाइपोक्सिया (Hypoxia) का खतरा अधिक रहता है। फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम होने के परिणामस्वरूप भी हाइपोक्सिया (Hypoxia) हो सकता है। जो लोग दर्द निवारक दवाओं का अधिक सेवन करते हैं वह भी इसके शिकार हो सकते हैं। इसके अलावा पोषण की कमी और एनीमिया के कारण भी इसका खतरा बना रहता है। जब तक लक्षण दिखने न लगें तब तक इसकी पहचान नहीं हो पाती।
हाइपोक्सिया (Hypoxia) की स्थिति आने के कुछ समय बाद ही मस्तिष्क, लीवर और अन्य अंगों को क्षति पहुंचनी शुरू हो जाती है। यही कारण है कि सही समय पर इसका निदान कर पाना बहुत कठिन होता है। इस समस्या से सभी उम्र के लोग प्रभावित हो सकते हैं। इससे बचने के लिए सांस संबंधी व्यायाम अपनी दिनचर्या में शामिल करें। धूम्रपान न करें, प्रदूषण से बचें, खानपान ठीक रखें और पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं। हाइपोक्सिया (Hypoxia) की समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।