शरीर में कम्पार्टमेंट सिंड्रोम क्यों होता है

शरीर में कम्पार्टमेंट सिंड्रोम क्यों होता है
शरीर में कम्पार्टमेंट सिंड्रोम (Compartment Syndrome) क्यों होता है आइये जानते हैं रोजमर्रा की जिंदगी में चोट या कुछ अन्य वजहों से कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि शरीर के किसी हिस्से में ऑक्सीजन, खून और पोषक तत्वों की आपूर्ति प्रभावित हो जाती है। धीरे-धीरे यह समस्या बढ़ने लगती है और यदि लंबे समय तक नजरअंदाज किया जाए तो 'कम्पार्टमेंट सिंड्रोम (Compartment Syndrome)' जैसी गंभीर स्थिति पैदा हो सकती है। मांसपेशियों, ऊतकों, रक्त वाहिकाओं और नसों के समूह को 'कम्पार्टमेंट' कहा जाता है।

यह 'फास्किया' नामक मजबूत झिल्ली के आवरण से घिरा होता है। जब किसी कारण से मांसपेशियों के समूह पर अत्यधिक दबाव पड़ता है तो रक्तस्त्राव या सूजन होने लगती है और कम्पार्टमेंट सिंड्रोम की स्थिति बन जाती है। ऐसे में सामान्य रक्त प्रवाह भी बाधित हो जाता है और ऊतकों में ऑक्सीजन का पहुंचना कम या फिर बंद हो जाता है। ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण ऊतक निष्क्रिय होने लगते हैं साथ ही कम्पार्टमेंट के भीतर की मांसपेशियों और रक्त वाहिकाओं में भी इंजरी का खतरा बढ़ जाता है।

कम्पार्टमेंट सिंड्रोम (Compartment Syndrome) कितने प्रकार के होते हैं ?

कम्पार्टमेंट सिंड्रोम दो प्रकार के होते हैं - पहला एक्यूट और दूसरा क्रॉनिक। इनके लक्षण भी अलग-अलग होते हैं। मांसपेशियों में तेज दर्द एक्यूट कम्पार्टमेंट सिंड्रोम (Compartment Syndrome) के मुख्य लक्षणों में से एक है। इससे प्रभावित हिस्से में जकड़न आ जाती है और आसपास की त्वचा में सुई जैसी चुभन या करेंट जैसा झटका महसूस होने लगता है। जलन की शिकायत भी हो सकती है। ऊतकों पर दबाव बहुत अधिक बढ़ने पर पक्षाघात होने का भी डर रहता है।

फ्रैक्चर या चोट के कारण मांसपेशियों का बुरी तरह से फट जाना, हाथ या पैर की रक्त वाहिकाओं की सर्जरी, शारीरिक रूप से अक्षम होने पर किसी अंग का काम न करना, एनबालिक स्टेरॉयड का उपयोग, पट्टी को मजबूती से बांधना और पेट के कठिन व्यायाम आदि एक्यूट कम्पार्टमेंट सिंड्रोम के मुख्य कारण हैं। क्रॉनिक कम्पार्टमेंट सिंड्रोम के लक्षण भी इससे मिलते-जुलते ही होते हैं। क्रॉनिक कम्पार्टमेंट सिंड्रोम की स्थिति में हल्का व्यायाम करने पर भी मांसपेशियों में दर्द और ऐंठन होने लगती है।

इसके अन्य लक्षणों में हाथ-पैर या प्रभावित हिस्से को हिलाने में परेशानी, प्रभावित अंग का सुन्न हो जाना, मांसपेशियों में उभार दिखाई देना इत्यादि शामिल हैं। भारी व्यायाम या अधिक मेहनत वाले कामों से कम्पार्टमेंट सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है। अगर आपको अपने शरीर में ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो बिना वक्त गवाएं डॉक्टर से संपर्क करें अन्यथा इसका इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है।
 

कम्पार्टमेंट सिंड्रोम (Compartment Syndrome) का इलाज कैसे होता है ?

एक्यूट और क्रॉनिक दोनों ही मामलों में डॉक्टरों द्वारा कुछ परीक्षण किए जाते हैं। कम्पार्टमेंट (मांसपेशियों और ऊतकों का समूह) में दबाव की स्थिति का पता लगाने के लिए प्रेशर मशीन का उपयोग किया जाता है। व्यायाम से पहले और उसके बाद दबाव का आकलन किया जाता है। अगर व्यायाम के बाद मांसपेशियों में बहुत अधिक दबाव की पुष्टि होती है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कम्पार्टमेंट सिंड्रोम की समस्या है। इसके अलावा कम्पार्टमेंट सिंड्रोम की अन्य स्थितियों का पता लगाने के लिए एक्स-रे भी किया जाता है। एक्यूट कम्पार्टमेंट सिंड्रोम के अधिकतर मामलों में तत्काल सर्जरी की आवश्यकता होती है। क्रॉनिक कम्पार्टमेंट सिंड्रोम का इलाज दवा और सर्जरी दोनों ही विधियों से किया जाता है। इसके निदान हेतु दवाइयों के अतिरिक्त फिजियोथैरेपी की भी मदद ली जाती है। कोई लाभ न होने पर प्रभावित हिस्से की सर्जरी करनी पड़ती है। एक्यूट और क्रॉनिक कम्पार्टमेंट सिंड्रोम की सर्जरी लगभग एक ही तरह की होती है।
Next Post Previous Post