प्लास्टिक के कप में चाय पीने के नुकसान जानिए
प्लास्टिक के गिलास में चाय या फिर गर्म दूध पीने से डायरिया होने का भी खतरा रहता है। इसके साथ ही कई सारे अंगों पर इसका प्रत्यक्ष रूप से असर भी पड़ता है। दरअसल, डिस्पोजेबल गिलास में वैक्स की परत लगाई जाती है जो चाय की हर चुस्की के साथ पेट में जाती है और धीरे-धीरे बीमार करती जाती है।
कई शोध में पाया गया है कि हम प्लास्टिक के कप में चाय पीते हैं तो इससे हमारी किडनी और पाचन तंत्र भी खराब हो सकता है। डिस्पोजेबल या प्लास्टिक में मेट्रोसेमिन, बिस्फिनॉल और बर्ड इथाइल डेक्सिन नाम के केमिकल होते हैं। अगर गर्भवती महिला प्लास्टिक के गिलास में चाय का सेवन करती है तो इससे न केवल उसकी सेहत पर असर पड़ता है बल्कि होने वाले बच्चे पर भी खराब प्रभाव पड़ता है। डिस्पोजेबल कप में चाय का सेवन करने से थकान और हार्मोन्स में असंतुलन जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। इतना ही नहीं, इसमें मौजूद केमिकल दिमाग पर भी गलत असर डालता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि डिस्पोजल एक बड़ी समस्या है क्योंकि इनकी रिसाइक्लिंग आसानी से संभव नहीं है। इनको जलाया जाए तो जहरीली गैस निकलती है। जमीन के अंदर गाड़ देना प्लास्टिक नष्ट करने का आदर्श और उचित ढंग नहीं है। आंकड़ों के अनुसार, 1950 से अब तक एक अरब टन से भी अधिक प्लास्टिक बगैर उचित निपटान के यूं ही फेंका जा चुका है।
देश के 60 फीसद प्लास्टिक कचरे को दुनिया के महासागरों में फेंक दिया जाता है। एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अनुसार, दुनिया की दस नदियों में से तीन जो महासागरों में 90 फीसद प्लास्टिक ले जाती हैं, उनमें भारत की तीन प्रमुख नदियां - सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जनवरी 2015 की आकलन रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय शहर हर दिन 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करते हैं।
प्लास्टिक की सबसे बड़ी दिक्क़त यह है कि यह किसी अन्य तत्व या जैविक चीजों की तरह पर्यावरण में घुलती नहीं, बल्कि सैकड़ों साल तक वैसे ही बनी रहती है। प्लास्टिक के दोयम दर्जे के इन गिलासों के बजाय मिट्टी के कुल्हड़ का इस्तेमाल करना कई तरीकों से फायदेमंद है। इससे पाचन तंत्र बिगड़ता नहीं और हड्डियां भी मजबूत होती हैं। कुल्हड़ की जो मिट्टी होती है उसमें कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो शरीर में कैल्शियम की कमी को पूरा कर देता है।
मिट्टी की तासीर ठंडी होती है और कुल्हड़ में डाली गई चाय ज्यादा देर तक गर्म नहीं रहती, इसलिए जितना जल्दी हो सके इस पी लेना चाहिए। मिट्टी से बने होने की वजह से इसमें भीनी-सी खुशबू आती है, जिससे इसका स्वाद भी काफी अच्छा लगता है। कुल्हड़ का इस्तेमाल किए जाने से स्थानीय कुम्हारों को रोजगार मिलेगा और कागज तथा प्लास्टिक से बने गिलासों का इस्तेमाल बंद होने से पर्यावरण को रहा नुकसान कम होगा।