लेजर थेरैपी कब और कैसे फायदेमंद है ?

लेजर थेरैपी कब और कैसे फायदेमंद है ?

लेजर थेरैपी चिकित्सा जगत में इस्तेमाल होने वाली अत्याधुनिक पद्धति है। शुरुआत में लेजर थेरैपी को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं जताई जा रही थीं, लेकिन बाद में वे सब निर्मूल सिद्ध हुईं। आमतौर पर इस थेरैपी का इस्तेमाल दर्द और सूजन से निजात दिलाने के लिए किया जाता है लेकिन यह गठिया, स्पाइन एनजरी, सॉफ्ट टिशू डैमेज, सायटिका, फाइब्रोमाल्जिया, प्रोस्टेट, गुर्दे की पथरी, बालों का गिरना, डायबिटीज, त्वचा पर गांठों का बनना और रेटिना के रोगों के इलाज में भी सहायक है।
आजकल सुंदरता बढ़ाने के लिए चेहरे पर इस लेजर थेरैपी का उपयोग धड़ल्ले से किया जाने लगा है। सर्जरी में भी इसकी मदद ली जाती है। कुछ चिकित्सक कैंसर के मरीजों को लेजर थेरैपी देते हैं लेकिन कैंसर के उपचार में इसकी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। कैंसर रोगियों को लेजर थेरैपी देना एक सोचा-समझा खतरा उठाने जैसा है क्योंकि इससे कोशिकाओं का विभाजन और उनकी वृद्धि दर तेज हो सकती है और यही कैंसर का मुख्य कारण भी है।
जटिल रोगों के उपचार में लेजर थेरैपी की भूमिका बहुत कारगर है। कुछ ख़ास किस्म की सर्जरी में भी लेजर थेरैपी बहुत काम आती है। इस थेरैपी में 'केंद्रित प्रकाश' तकनीक का उपयोग किया जाता है। शरीर के जिस अंग में समस्या है वहां एक ख़ास तरह की मशीन से त्वचा के ऊपर लेजर किरणें छोड़ी जाती हैं। इससे त्वचा के भीतर मौजूद काम न करने वाले ऊतक फिर से क्रियाशील हो जाते हैं। इस क्रिया को 'फोटोबायोमॉड्युलेशन' या 'पीबीएम' कहते हैं।
फोटोबायोमॉड्युलेशन के दौरान, फोटॉन ऊतक में प्रवेश करते हैं और माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर कुछ रासायनिक क्रियाओं को जन्म देकर कोशिकाओं की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं और दर्द तथा मांसपेशियों की ऐंठन जैसे लक्षणों में कमी लाते हैं। सही इलाज के लिए लेजर प्रकाश का पर्याप्त मात्रा में ऊतकों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। लेजर सर्जन या थेरैपिस्ट की भूमिका भी बहुत अहम होती है।
शरीर के एक छोटे से हिस्से पर सही तरीके से लेजर किरणें छोड़ना ख़ासा कौशल का काम है। मरीज को किस तीव्रता और किस 'वेवलेंथ' की लेजर देनी है इसका निर्धारण भी कठिन होता है। कोशिश यह होनी चाहिए कि इलाज के दौरान अन्य ऊतकों या कोशिकाओं को कम से कम नुकसान पहुंचे। अगर लेजर की तीव्रता निर्धारित सीमा से कम रहती है तो इलाज से कोई लाभ नहीं होगा। इसी तरह लेजर की तीव्रता अधिक होने पर आसपास के ऊतकों को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है।

यह भी जानना बहुत जरूरी है :

दर्द से राहत दिलाने में लेजर थेरैपी रामबाण है। दर्द कैसा भी हो और कितना भी पुराना हो, आमतौर पर इससे ठीक हो जाता है। समस्या गर्दन में हो या कंधों में, कोहनी में हो या जोड़ों में, अगर मरीज बहुत तकलीफ में है तो डॉक्टर ये थेरैपी जरूर आजमाते हैं। फाइब्रोमायल्जिया जैसी पकड़ में न आने वाली बीमारियों में भी इसने बेहतर काम किया है। गंभीर मरीजों के इलाज में लेजर थेरैपी अधिक प्रभावी है। पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों की तुलना इसके साइड-इफेक्ट भी कम हैं। इससे त्वचा पर किसी तरह के दाग-धब्बे नहीं पड़ते। लेजर थेरैपी से पहले किसी ख़ास तैयारी की जरूरत भी नहीं होती। थेरैपी के दौरान एक काला या गहरे रंग का चश्मा पहनने को दिया जाता है ताकि आँखों को कोई नुकसान न पहुंचे।
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