लेजर थेरैपी कब और कैसे फायदेमंद है ?
आजकल सुंदरता बढ़ाने के लिए चेहरे पर इस लेजर थेरैपी का उपयोग धड़ल्ले से किया जाने लगा है। सर्जरी में भी इसकी मदद ली जाती है। कुछ चिकित्सक कैंसर के मरीजों को लेजर थेरैपी देते हैं लेकिन कैंसर के उपचार में इसकी भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। कैंसर रोगियों को लेजर थेरैपी देना एक सोचा-समझा खतरा उठाने जैसा है क्योंकि इससे कोशिकाओं का विभाजन और उनकी वृद्धि दर तेज हो सकती है और यही कैंसर का मुख्य कारण भी है।
जटिल रोगों के उपचार में लेजर थेरैपी की भूमिका बहुत कारगर है। कुछ ख़ास किस्म की सर्जरी में भी लेजर थेरैपी बहुत काम आती है। इस थेरैपी में 'केंद्रित प्रकाश' तकनीक का उपयोग किया जाता है। शरीर के जिस अंग में समस्या है वहां एक ख़ास तरह की मशीन से त्वचा के ऊपर लेजर किरणें छोड़ी जाती हैं। इससे त्वचा के भीतर मौजूद काम न करने वाले ऊतक फिर से क्रियाशील हो जाते हैं। इस क्रिया को 'फोटोबायोमॉड्युलेशन' या 'पीबीएम' कहते हैं।
फोटोबायोमॉड्युलेशन के दौरान, फोटॉन ऊतक में प्रवेश करते हैं और माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर कुछ रासायनिक क्रियाओं को जन्म देकर कोशिकाओं की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं और दर्द तथा मांसपेशियों की ऐंठन जैसे लक्षणों में कमी लाते हैं। सही इलाज के लिए लेजर प्रकाश का पर्याप्त मात्रा में ऊतकों तक पहुंचना बहुत जरूरी है। लेजर सर्जन या थेरैपिस्ट की भूमिका भी बहुत अहम होती है।
शरीर के एक छोटे से हिस्से पर सही तरीके से लेजर किरणें छोड़ना ख़ासा कौशल का काम है। मरीज को किस तीव्रता और किस 'वेवलेंथ' की लेजर देनी है इसका निर्धारण भी कठिन होता है। कोशिश यह होनी चाहिए कि इलाज के दौरान अन्य ऊतकों या कोशिकाओं को कम से कम नुकसान पहुंचे। अगर लेजर की तीव्रता निर्धारित सीमा से कम रहती है तो इलाज से कोई लाभ नहीं होगा। इसी तरह लेजर की तीव्रता अधिक होने पर आसपास के ऊतकों को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है।