पिका रोग से बचना है तो ये आदत अभी छोड़ दें

पिका रोग से बचना है तो ये आदत अभी छोड़ दें

अक्सर आपने बच्चों या बड़ों को नाखून चबाते, पेन और पेपर या चॉक जैसी चीजें खाते हुए देखा होगा। क्योंकि ये पिका रोग के लक्षण हो सकते हैं। वयस्क होने पर भी बहुत से लोगों में यह आदत बनी रहती है। अगर आप भी ऐसा करते हैं तो इसे गंभीरता से लेना शुरू कर दें। दरअसल, यह आदत आपकी मानसिक दशा को बताती है और यह भी कि आपके जीवन में सब कुछ ठीक नहीं है। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि यह आदत धीरे-धीरे छूट जाएगी, लेकिन बहुत समय बीत जाने पर यह एक मानसिक बीमारी का रूप ले लेती है जिसे 'पिका रोग' कहते हैं।

इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को उल्टी-सीधी चीजें खाकर संतुष्टि मिलती है। ऐसी चीजें खाने की इच्छा होने लगती है जो सामान्य तौर पर खाद्य पदार्थों की श्रेणी में ही नहीं आतीं। अमूमन यह प्रवृत्ति बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है। इस बीमारी से प्रभावित लोग बर्फ, साबुन, प्लास्टिक, मिट्टी, रेत, राख, चॉक आदि खाने लगते हैं। इससे उन्हें कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी होने लगती हैं।

पिका रोग के संभावित कारणों में पीड़ित का किसी मानसिक हादसे का शिकार होना मुख्य है। इसके अलावा किसी तरह का तनाव और शरीर में आयरन, जिंक जैसे कुछ विशेष पौष्टिक तत्वों की कमी भी इसकी वजह हो सकती है। किसी तरह की उपेक्षा या उत्पीड़न का शिकार होने पर भी व्यक्ति में इसके लक्षण देखने को मिलते हैं। पीड़ित व्यक्ति एक आवेग महसूस करता है।

बहुत से लोग सूखे पेंट, धातु के टुकड़े और कुल्हड़ आदि चीजों को खाने लगते हैं। इस प्रकार की अनावश्यक और गैर खाने योग्य वस्तुओं को खाने की लालसा और आदत कई बार गंभीर परिस्थितियों का कारण बन सकती है जैसे - पॉइजनिंग, परजीवी संक्रमण, आतों में रुकावट और खाद्य नली में वस्तुओं का फंसना आदि।

इस बीमारी से निजात मिलना मुश्किल नहीं है लेकिन इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की बहुत जरूरत है। हालांकि जिन लोगों को कोई मानसिक समस्या है यदि वे उस पर काम नहीं करते तो उन्हें यह मनोरोग लंबे समय तक रह सकता है। इसलिए जरूरी है कि अपने मानसिक द्वन्द को खत्म कर तनावपूर्ण हालात से छुटकारा पाने की कोशिश करें। यह आपके जीवन और दिनचर्या, दोनों को प्रभावित कर सकता है।

किसी भी तरह की बुरी घटना, जो पहले घट चुकी है उसको भुलाने की कोशिश करें और खुद को समझाएं कि आप भी सामान्य जीवन जी सकते हैं। अपने खान-पान के तरीकों को लेकर सचेत रहें। इस मनोदशा की शुरुआत अक्सर नाखून चबाने से होती है जो धीरे-धीरे उग्र होती जाती है, इसलिए रोग के शुरूआती लक्षण दिखते ही मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक से सलाह अवश्य लें।

मन की बात को दूसरों से कहें :

पिका रोग का निदान रोगी की मेडिकल हिस्ट्री और कुछ दूसरी चीजों के आधार पर किया जाता है। यदि पोषक तत्वों के असंतुलन के कारण रोगी को इसकी समस्या हो रही है तो उसे विटामिन या अन्य पूरक दिए जा सकते हैं। इससे जुड़ी अन्य मानसिक स्थितियों और उनके मूल्यांकन के लिए मनोवैज्ञानिक का सहारा लिया जाता है जो काउंसलिंग द्वारा समस्या का पता लगाकर उसे दूर करने की कोशिश करते हैं।

यदि आपके साथ कोई बुरा हादसा हुआ है तो उसे भी कतई न छिपाएं। डॉक्टर से मन की बात कहें। इसके निदान के लिए जरूरी है कि आप उन सभी गैर खाद्य पदार्थों के बारे में बताएं, जिन्हें खाने की आपको तीव्र इच्छा महसूस होती है।
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