आज के समय में ज्यादातर बातें वीडियो कॉल पर होती हैं। दफ्तर का काम हो या घर-परिवार के किसी सदस्य से बात करनी हो, फोन उठाया और वीडियो कॉलिंग कर ली। ऑनलाइन फेस टू फेस बात करना जितना आसान है, इसके नुकसान भी कम नहीं हैं। वीडियो कॉलिंग का अधिक उपयोग आपका तनाव बढ़ाता है साथ ही ऊर्जा नष्ट करता है। इसलिए कुछ विशेषज्ञ अक्सर लोगों को ऑडियो कॉल करने की सलाह देते हैं। लेकिन सवाल यह है कि हम कैसे जानें कि वीडियो पर वॉइस कॉल कब चुनना है और कब नहीं ?
वीडियो कॉल क्या जरूरी है ?
दफ्तर का काम या फिर किसी अन्य जरूरी बात के लिए दूर बैठे व्यक्ति को वीडियो कॉल करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि क्या बात वॉइस कॉल, मैसेज या मेल के जरिए हो सकती है। अगर संभव न हो, तभी वीडियो कॉल करें।
स्क्रीन प्रेजेंस पर पूरा ध्यान :
फोन कॉल के इन दोनों माध्यमों के बीच के अंतर को भी समझना जरूरी है। वीडियो कॉल करते समय आप ज्यादा सतर्क रहते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आपके आसपास के बैकग्राउंड और शारीरिक गतिविधि पर सामने वाले की नजर रहती है। घंटों तक चलने वाली वीडियो कॉल के बाद कई लोग तो अत्यधिक तनाव महसूस करते हैं। उनका ध्यान असल मुद्दे के साथ अपनी पर्सनालटी और स्क्रीन प्रेजेंस पर भी रहता है जबकि ऑडियो कॉल में पूरा ध्यान बातचीत पर ही केंद्रित रहता है।
कुछ समय तो सही, फिर ग्लिच :
ऑडियो कॉल की तुलना में वीडियो क्वालिटी अब भी बहुत अच्छी नहीं रहती है। आपने अक्सर देखा होगा कि जूम, गूगल मीट, स्लैक, फेसटाइम और व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल करते समय पिक्चर क्वालिटी खराब हो जाती है। कुछ समय तो सामने वाला सही दिखाई देता है, लेकिन फिर ग्लिच आने लगते हैं। इससे बातचीत प्रभावित होती है साथ ही समय भी बर्बाद होता है। ऑडियो कॉल में ये तमाम दिक्कतें कम ही होती हैं।
अगर कैमरा फ्रेंडली नहीं है :
कॉल से पहले प्राथमिकता तय करें और योजना बनाएं। ऑडियो हो या वीडियो, पहले से मीटिंग शेड्यूल करने की पेशकश करें। अगर आप कैमरा फ्रेंडली नहीं है तो विनम्रता और ईमानदारी के साथ बॉस से बात कर उन्हें समस्या बताएं। अगर वीडियो कॉल बहुत जरूरी है तो पहले ही इस संबंध में रणनीति बनाएं। ध्यान रहे, बातचीत के दौरान सामने वाला स्क्रीन प्रेजेंस को मापता है, इसलिए वह प्रभावशाली होनी चाहिए।