अब आपकी आंखों से गिरते आंसू शरीर में होने वाले बदलाव के बारे में बताएंगे
आई-टियर्स तकनीक कैसे काम करती है ?
आई-टियर्स तकनीक के जरिए बीमारी का पता लगाने में केवल पांच मिनट का समय लगता है। वैज्ञानिक आंसू की संरचना का विश्लेषण करने के लिए नैनो तकनीक का उपयोग करते हैं। एक्सोसोम (एक प्रकार की छोटी थैली, जो आंसू बनाती है) में शरीर के सूक्ष्म सिग्नल होते हैं, जो स्वास्थ्य संबंधी जानकारी प्रदान करते हैं। मनुष्य के लार या मूत्र परीक्षण के समान इन एक्सोसोम को इकट्ठा करने के लिए आई-टियर्स तकनीक का इस्तेमाल होता है।
आंसूओं में मौजूद एक्सोसोम थैलियों की संख्या शरीर के अन्य द्रव्यों की तुलना में बहुत कम होती है, इसलिए वैज्ञानिकों की टीम 'नैनोमेम्ब्रेन' सिस्टम का इस्तेमाल आंसूओं से एक्सोसोम को अलग करने के लिए करते हैं। एक्सोसोम के डेटा का उपयोग करते हुए वैज्ञानिक बायोमार्कर जानकारी को समझने में सक्षम हुए। प्रारंभिक परिणाम आशाजनक हैं, क्योंकि केवल आंसूओं का उपयोग करके अधिक बीमारियों का शुरूआती चरण में निदान करने से कई लोगों को स्वास्थ्य लाभ होगा।
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक दिन लोग अपने घर पर ही बेहद आसानी से आंसूओं का परीक्षण कर पाएंगे। अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने 426 प्रोटीन की खोज की, जो ड्राई आई सिंड्रोम से जुड़े हैं। इनके अलावा उन्होंने कुछ संकेतकों की खोज भी जो डायबिटिक रेटिनोपैथी (डायबिटीज के कारण होने वाला एक आंख संबंधी रोग) को बढ़ावा देते हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में दुनिया के साथ-साथ भारत में भी इस आई-टियर्स तकनीक से लैस डिवाइस आम लोगों के लिए उपलब्ध होंगे।