ब्रज से शुरू होने वाली गोवर्धन पूजा पूरे देश में ऐसे उत्सव की तरह मनाई जाती है
Govardhan Puja
ब्रज से शुरू होने वाली गोवर्धन पूजा पूरे देश में ऐसे उत्सव की तरह मनाई जाती है
कहते हैं कि पहले सभी ब्रजवासी इंद्र की पूजा करते थे। नंदबाब और सभी ब्रजवासी जब देवराज इंद्र की पूजा करने जा रहे थे तभी भगवान श्रीकृष्ण ने नंदबाबा से कहा कि "व्यर्थ में इंद्र की पूजा क्यों करते हो?" खूब तर्क-वितर्क के बाद नंदबाबा और अन्य ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा बंद करके अपने उपासकों की पूजा प्रारंभ कर दी। इस पर इंद्र नाराज हो गए और पूरे ब्रज क्षेत्र में अपने मेघों से घनघोर वर्षा प्रारंभ करा दी। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।
ब्रजवासियों ने श्रीकृष्ण से गुहार लगाई कि "त्यारो कारन जि भयो है, अब तुम्हीं कहो कि इंद्र की पूजा करें कि नाहीं?" तब भगवान श्रीकृष्ण ने विशाल गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को उसके नीचे आने को कहा। सभी ब्रजवासी अपने परिवार और पशुओं सहित गोवर्धन पर्वत के नीचे आकर सुरक्षित हो गए। सात दिन तक घनघोर वर्षा होती रही। इंद्र ने देखा कि घनघोर वर्षा से भी ब्रजवासी विचलित नहीं हुए। उन्होंने ध्यान लगाकर स्मरण किया तो उनके चक्षु खुले कि यह साधारण बालक नहीं, अपितु श्रीकृष्ण हैं। तब इंद्र ने पृथ्वी पर आकर भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। उस दिन से संपूर्ण ब्रज प्रदेश में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) होने लगी। यह पर्व प्रकाश उत्सव दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है।
गोवर्धन में तो गोवर्धन पर्वत के मुखारबिंद पर शृंगार करके दूध चढ़ाया जाता है। नाना प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं, विशेष तौर पर बैंगन-मूली और गड्ड की सब्जियां, जिनको पूरियों पर रखकर दर्शनार्थियों को बांटा जाता है। गोवर्धन की परिक्रमा का बहुत महत्व है। यह परिक्रमा 21 किलामीटर (7 कोस) की होती है। प्रत्येक पूर्णिमा के अलावा गुरु पूर्णिमा अथवा मुड़िया पूनौ पर हजारों-लाखों भक्त गोवर्धन की परिक्रमा लगाते हैं। इसी दिन अन्नकूट का आयोजन होता है, जिसमें छप्पन प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। इसको 'छप्पन भोग' नाम से भी पुकारा जाता है।
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का वैज्ञानिक महत्व भी है, साथ ही आर्थिक महत्व भी कम नहीं है। भारत कृषि प्रधान देश है। यहां एक बड़ी आबादी गावों में निवास करती है, जो कृषि पर जीविका चलाती है। अब तो ट्रैक्टर आदि से खेत जोते और बोए जाते हैं, लेकिन पहले जुताई, बुवाई, मड़ाई और अनाज को भूसे से अलग करना आदि बैलों द्वारा होती थी। अब भी जिन कृषकों के पास ट्रैक्टर खरीदने के लिए धन नहीं है, वे हल और बैलों से ही खेती करते हैं। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) का महत्व इसलिए अधिक बढ़ जाता है कि गोवंश की रक्षा होती है। गाय का दूध सर्वाधिक उपयोगी है।
घरों में गोवर्धन की आकृति ऐसे बनाई जाती है
गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) के दिन आंगन में गोबर से लिपाई करके गोवर्धन के प्रतीक एक ग्वाले की आकृति बनाई जाती है, जिसमें आंखों के स्थान पर दो कौड़ियां लगाई जाती हैं। दांतों के प्रतीक में धान की खीलें लगाई जाती हैं। गोवर्धन पर्वत पर लगे पेड़ों के प्रतीक के रूप में सफेद सीकें लगाकर उनके ऊपर रुई के गुच्छे लगाए जाते हैं। सायंकाल परिवार के सभी सदस्य गीत गाते हुए और जयकारा लगाते हुए गोवर्धन के प्रतीक की सात परिक्रमा लगाते हैं।