नवरात्रि में देवी मां की पूजा-अर्चना में वास्तु नियमों का भी ध्यान रखें
Happy Navratri
नवरात्रि में देवी मां की पूजा-अर्चना में वास्तु नियमों का भी ध्यान रखें
देवी मां की पूजा-अर्चना में यदि वास्तु नियमों का भी ध्यान रखा जाए तो इससे भक्ति में ध्यान लगता है। इससे मिलने वाले आशीर्वाद में वृद्धि होती है और देवी मां का मार्गदर्शन भी प्राप्त होता है। गणेश चतुर्थी एवं जैन धर्म में पर्यूषण पर्व से शुरू हुए शुभ एवं भक्तिमय दिन नवरात्रि (Navratri) से लेकर दीपावली तक अत्यंत उल्लास, उमंग, श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाए जाते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण पर्व नवरात्रि (Navratri) भी है।
पूजा स्थान :
वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तर-पूर्व दिशा में मानसिक स्पष्टता एवं प्रज्ञा का क्षेत्र है। यहां के ग्रहीय देवता गुरु यानी बृहस्पति हैं और दिग्पाल स्वयं भगवान शिव हैं। घर के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में उत्तर-पूर्व की तरफ मुंह करके पूजन करने से पूजा से मिलने वाली शांति, संतुष्टि और सुखों में अतिशय वृद्धि होती है।
पूजा कक्ष साफ-सुथरा और उसकी दीवारें हल्के रंगों, जैसे - सफेद, क्रीम, हल्का पीला, हरा या सुनहरे रंगों से रंगी होनी चाहिए। ये सभी रंग मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने में सहायक होते हैं।
नवरात्रि (Navratri) के दौरान पूजा घर के बाहर और मुख्य द्वार के बाहर या अंदर रंगोली बनाने का विशेष महत्व है। पूजा अनुष्ठान के समय मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्ते लगाने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती हैं।
दीपक एवं पूजन सामग्री :
अखंड दीपक को पूजा स्थल दक्षिण-पूर्व यानी आग्नेय कोण में रखना शुभ होता है। आग्नेयकोण दिशा पोषक अग्नि, शुभ कार्यों, मंगल कार्यों एवं गृहलक्ष्मी की प्रतिनिधि दिशा है। इसलिए इस दिशा में दीपक, अखंड ज्योति और आटे से बने घी के दीये के प्रज्वलन का विशेष महत्व है। ऐसा करने से मंगल कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं और घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। संध्याकालीन आरती में घी का दीपक और कपूर की सुगंधि करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह निर्बाद बना रहता है।
नवरात्रि (Navratri) के दौरान देवी मां के पूजन में प्रयुक्त सामग्री पूजा स्थल के ईशान एवं आग्नेय कोण में रखी जा सकती है। पूजा कक्ष के दरवाजे पर सिंदूर, रोली या हल्दी का स्वास्तिक बनाने से मां की कृपा प्राप्त होती है। नवरात्रि (Navratri) की पूजा में जौं को बेहद शुभ माना गया है। जौं को पूजा स्थल के पूर्व या उत्तर-पूर्व में रखना शुभ फलों में वृद्धि करता है।