हैप्पी दिवाली के दोहे पढ़ते हुए आप दीये संग प्यार भरा उत्सव मनाइए
जब हम खुद पर सांसारिक व्याधियों के अंधेरे को हावी होने देते हैं तो हमारी जिंदगी भी अंधकारमय बन जाती है। ज्यादा धन पाने की खातिर हम भूल जाते हैं कि मानव जीवन क्यों मिला है और अनमोल मानुष जन्म को यूं ही बर्बाद कर लेते हैं। हमारा मानुष जन्म तभी सार्थक हो सकता है, जब हम अपनी खुशियों और सुखों को हासिल करने के साथ दूसरों की जिंदगी को भी किसी न किसी तरह रोशन करने की कोशिश करें।
एक मिट्टी का छोटा-सा दीपक भी जलकर हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि वो खुद जलकर दूसरों को रोशनी प्रदान करता है, जबकि हम मानुष होकर भी सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हैं। दीपक से हमें यह भी सीखना चाहिए कि हमें अपनी धन, दौलत, संपत्ति और रंग-रूप का अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिस तरह दीपक तेल खत्म होने पर बुझ जाता है, उसी प्रकार हमारे श्वासों का भी अंत हो जाना है, इसलिए क्यों न हम अपने अनमोल जीवन को परोपकार में लगाकर अपने कर्मों को रोशन कर लें। हमें जिंदगी में उम्मीदों के दीपक को नहीं बुझने देना चाहिए।
Diwali के दोहे
दीपों की फिर एकता, देखो लाई रंग।
अंधकार मारा फिरे, दीपक जीते जंग।।
ज्योति-पर्व ने दोस्तों, रखे इस तरह पांव।
झिलमिल-झिलमिलकर उठे, गली-मुहल्ले-गांव।।
ज्योति-पर्व वंदन करें, शत-शत करें प्रणाम।
अंधियारों की साजिशें, तुमने कीं नाकाम।।
राम तुम्हारी वापसी, को तरसें ये नैन।
गली-गली रावण उगे, है जन-जन बेचैन।।
ज्योति-पर्व पर दोस्तों, लें संकल्प विशेष।
जैसे अंधियारा मिटा, मिटे हृदय से द्वेष।।
अद्भुद इसकी शान है, जगमग यह त्योहार।
नन्हें-नन्हें दीप मिल, तम पर करें प्रहार।।
जीवन की संभावना, कभी न हो अवरुद्ध।
इक दीपक ये ठानकर, करता तम से युद्ध।।
वाण चले श्रीराम के, हुई तमस की हार।
अवधपुरी जैसा लगे, सारा ही संसार।।
अहंकार से जब ग्रसित, हो जाता है ज्ञान।
सत्य न दीखे नेत्र को, सत्य न सुनते कान।।
जो सुपात्र हैं मेंटने, उनके सभी कलेश।
देवलोक से चल पड़े, लक्ष्मी और गणेश।।