अगर आपके घर में विष्णु भगवान की कथा और आरती होगी तो आपको ये फल मिलेगा

अगर आप अपने घर में विष्णु भगवान की कथा और आरती गाएंगे तो आपको ये फल मिलेगा
   
विष्णु भगवान की कथा या सत्यनारायण की कथा बोल सकते हैं। अगर हम इसके समय की बात करें तो प्रातः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि-विधान से करने का निर्देश दिया गया है। विष्णु भगवान की कथा आप बृहस्पतिवार (गुरूवार) के दिन भी कर सकते हैं। 
विष्णु भगवान की कथा या सत्यनारायण की कथा की पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती है, जिनसे विष्णु भगवान की पूजा होती है। इस दिन विष्णु भगवान पूजा-आराधना करने से आपकी मनोकामना पूरी होगी। 
विष्णु भगवान की कथा करने के बाद आरती करना अनिवार्य है क्योंकि विष्णु भगवान की कथा तभी सम्पूर्ण मानी जाती है, जब विष्णु भगवान की आरती की जाती है। आप अपने घर में विष्णु भगवान की कथा जरूर करानी चाहिए इससे आपके घर में से नकारात्मक ऊर्जा बाहर निकल जाती है और रोगों से मुक्ति मिलती है। 
विष्णु भगवान की कथा कराने से माता लक्ष्मी भी बहुत प्रसन्न होती हैं जिससे हमारे घर में सुख-सम्रद्धि का आगमन होता है। आप अपने घर में विष्णु भगवान की पूजा-अर्चना जरूर करें और कथा करानी चाहिए, इसके बाद आरती करनी चाहिए। हमारे सभी काम बनने लगेंगे और हमारे घर में सुख-सम्रद्धि आने लगेगी। विष्णु भगवान की कथा के बाद नीचे लिखी हुई आरती गानी चाहिए। 

 विष्णु भगवान की आरती

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी...जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे...
ओम जय जगदीश हरे।।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। 
स्वामी...दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का...
ओम जय जगदीश हरे।।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। 
स्वामी... शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी...
ओम जय जगदीश हरे।।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। 
स्वामी...तुम अन्तर्यामी। 
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी...
ओम जय जगदीश हरे।।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। 
स्वामी...तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता...
ओम जय जगदीश हरे।।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। 
स्वामी...सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति...
ओम जय जगदीश हरे।।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। 
स्वामी...तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे...
ओम जय जगदीश हरे।।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। 
स्वामी...पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा...
ओम जय जगदीश हरे।।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। 
स्वामी...जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे...
ओम जय जगदीश हरे।।
Next Post Previous Post